Saturday, May 16, 2020


1. हजु ताड़ी की श्रम कथा जब मिट्टी में चाहता हूँ ठिकाना तो वह दिखा देती है दारुण शमशान आकाश से माँगने पर पनाह दिखा देता है कभी न देखी बाढ़ मेरी वाक्शक्ति के संपूर्ण प्रयोग के बाद भी चुप्पी की क्रूर आवाज हरदम बरकरार है। सबके सीने को खटखटाते हुए अपना परिचय देने कि बाद भी मैं एक अनजान प्रतिमा हो गया हूँ हे मानव जाति अभी तो मुझे पहचान लो मेरा नाम हजु ताड़ी है फटे कंबंल टूटा बर्तन अपनी एक टांग की औरत और तीन बच्चों के साथ कुछ काम की तलाश में गाँव गाँव घूम रहा हूँ एक श्रमिक हूँ मेरे श्रम को अपना लो मेहरबान पूजा के फूल तोड़ने से लेकर आपका पाखाना साफ़ करने तक के सभी काम करने की जान है मेरे शरीर में
 
 2. छोटा घर छ: फुट मिट्टी की दीवार माथे की ऊँचाई पर झूलता पेड़ का पत्ता घर के ऊपर कद्दू, लौकी घर के अंदर घुसते समय ‘जरा सिर झुकाकर, कहीं लग न जाए’ बोलने का जिंदा भय मेरा घर हाँ। गाँव का चौकीदार होने के नाते गाणा बस्ती में सबसे बड़ा घर हमारा, पर दरवाजा छोटा। बस्ती में और सबके घर सूअर के घर जैसे सब लोग फिर भी कैसे रीढ़ सीधा कर खड़े होते थे यह देखने वालों के लिए चिंता की बात थी ‘हमारा घर इतना छोटा क्यूँ जब प्रश्न उठता मन में गुस्सा आता था पिताजी पर सोचता था पिताजी गरीब हैं या असमर्थ? ईँट तैयार करने वाले, गाँव में रहते हुए भी इंतजाम कर नहीम पा रहे हैं अपने घर के लिए पाँच दस हजार ईंट हर वक्त प्रश्न कौंधता था हमारी बस्ती क्यूँ गाँव के आखिरी में है हमारे घर का दरवाजा इतना छोटा क्यूँ ? इस छोटे दरवाजे में हर वक्त घुसना पड़ता है चूहे की तरह पिताजी, चाचा सब लोग इस प्रश्न का संक्षिप्त सा उत्तर देते आए हैं जिस का ऊँचा घर राजा का आदमी आकर उससे लेते कर। उसके अलावा हम तो छोटे जात के लोग शास्त्र में मना है हमको बड़े-बड़े घर बनाना अभी तू छोटा है बाद में बड़े होने पर सब समझ जाओगे मैं ये सब सुनते ही गुमसुम चुपचाप हो जाता हूँ किसी से पूछने की हिम्मत नहीं कर पाता परंतु बढ़बढ़ाता रहता हूँ ये शास्त्र का मालिक कौन है शास्त्र से लोग इतना डरते क्यों हैं? 
 3. अछूत इलाके से अंधेरे जंगल में इमली के घने पत्तों सी खुली चाँदनी रात खड़ी थी रात को लपेटकर आती हो..हो.. भेड़िये की आवाज़ लंब-लेट चित्त जब मेरा बेटा सो जाता है चाँद बनकर आसमान में दिखता रहता है उसके हाथ मे खेलने वाला कंचा उस समय मे झरनो से रास्ता पूछते-पूछते पँहुच ही जाता है बूढ़ा पादरी खटखटाता है बांस से बना दरवाजा जब अ आ की वर्णमाला का सूरमा लगा देता है आँखों में तो जंगल का अंधेरा साफ़ दिखाई देने लगता है। पैर में सुँघा देता है सेहत का मंत्र तो मैं ठुमक-ठुमक कर पैर उठाता हूँ ईश्वर प्रेम की गुनगुनाती आवाज़ जब कान से टकराती है तो मैं बूढ़े पादरी से प्रेम करने लगता हूँ। मैं बूढ़े पादरी से प्रेम करने लगता हूँ क्योंकि वह जिन आँखों में झाँकता है उन आँखों में दृश्य बनकर मैं ही खड़ा होता हूँ वह जिस भाव को लेकर जीता है मैं उस भाव का विभाव बन जाता हूँ वह जिस गाने को रविवार को गाता है मैं उसके साथ वह गाना गाता हूँ मैं बूढ़े पादरी को प्रेम करता हूँ अच्छा ! आप सभी ने जो सदियों पहले मुझे फेंक दिया था बनवासी कहकर गाँव के अछूत इलाके में जंगल के शेर का चारा बनाकर जात-पात की संस्कृति में हे संस्कारवादियों! अब तक तुम कहाँ ठहरे थे बूढ़े पादरी द्वारा आँख को दृश्य कान को शब्द और जुबान को भाषा देने के बाद अब मेरे लिए लाए हो सुसज्जित करके केसरिया रथ जिस के अंदर बज रहा है पांचजन्य कह रहे हो बुला रहे हो मुझे लौटा लोगे मंत्रोच्चारण करके मुंडन करोगे गंगा का जल छिड़क कर पवित्र करोगे मुझे मुक्ति दोगे स्वधर्म में लौटने की खुशी मनाओगे यह भी कह रहे हो कि अगर चुपचाप तुम्हारी बात को शीरोधार्य करके नहीं बैठा तो चक्र भेजोगे दोस्तों जान लो पहले भी मेरी कोई आपत्ति तो नही थी ना आज ही है बस ! मुझे इतना समझा दो अपने धर्म में वापस आने के बाद ब्राह्मण, क्षत्रीय, बैश्य और भंगी, में से मुझे किसमें स्थान मिलेगा ? 4. झूँठ शबनम भाभी ईद के चाँद सी मुस्काती है मुलाकात होने पर कहती है तुम बड़े आदमी बन गये हो झूँठ बात पाँच फुट पाँच इंच के बासुदेव का सिर कभी उसके घर के दरवाजे पर टकराया तो नहीं
फिर कैसे हुआ बड़ा आदमी? बासुदेव एक अनजाने बस स्टैंड पर इंतजार करता हुआ असहाय, मामूली सा एक यात्री है हाथ हिला रहा है बस के लिए खड़ा है बस के दरवाजे पर पैर रखते ही बस छूट जा रही है शबनम भाभी झूँठ बोलने वाली अप्सरा है उनकी बात को गोली मारो कोई दिलदार व्यक्ति हो तो बस को जरा सा रुकवा दो भाई काफ़ी दिन बीत गए आत्मविश्वास के एक बस-स्टाप पर बासुदेव अपने भाग्य की बस का इंतजार कर रहा है। 5. मुखौटा बस एक वह आवाज ही काफ़ी थी शहर की हर दुकान पर चाय पीती हुई आँखों को मूँदने के लिए चाँद को लाकर अपने ड्राईंग रूम में सजाते हुए जुबान को काटकर गिद्धों को बाँट देने के लिए कोई भी नहीं पहचान पा रहा है वो निश्चित चेहरा जहाँ से पर्वत टूटने की आवाज बराबर आ रही थी शहर, जब चाय की दुकान पर पूछता है तो दुकानदार कहता है मात्र एक बिल्ली को ही देखा है इस इलाके में यह आवाज उसी की हो सकती है। रात में सीटी बजाते चौकीदार से जब पूछा जाता है तो वह कहता है एक शेर घूम रहा है यह आवाज उसकी हो सकती है शहर के मन मे एक बड़ा संदेह है वास्तव में आँख लग गई थी चाय पीने वालों की और जागने के लिए सीटी बजाते चौकीदार की एक दिन गुस्से में भर उठा शहर रातभर जाग कर पकड़ लिया उस जानवर को सुबह सवेरे नीम अंधेरे में चारों ओर शोर मच गया रास्ते, घाट, बाजार में बिल्ली पकड़ी गई बिल्ली पकड़ी गई आश्चर्य की बात है कुछ लोग तब भी थे बिल्ली को देखकर भी बेमतलब चिल्ला रहे थे यह शेर है यह शेर है यह बब्बर शेर है। 6. नाटक गाँवों की नदियों में दोस्तोंके साथ छलांग लगायी थी तो इसका मतलब ये नहीं कि मैं तैरना जानता हूँ कभी कभार गुलेल से दुपहर में चिड़ियों पर पत्थर मारकर निशाना लगाया था आप ये मत सोचना कि मैं धनुष चलाना जानता हूँ दुख से भरा दृश्य देखते ही मैं रो पड़ता हूँ खड़ग- तलवार देखते ही पजामे में पेशाब निकल जाता है और तुम कह रहे हो मंच पर खड़ा होने के लिये मुकुट पहनकर राजा होने के लिए रखो तुम्हारा मुकुट मुझे नहीं चाहिए राजशाही भले नाटक में ही क्यों न हो मैं युद्ध नहीं करूँगा मजाक में ही क्यूँ न हो किसी का घर टूटने पर मैं हँस, नहीं पाऊँगा 7. तोते को उड़ा दिया सूखे पेड के नीचे से पकड़कर लाया था तोते का एक बेसहारा बच्चा मन को मारकर तैयार किया एक पिंजरा पंख में लगा दिया मेरी सभी आकांक्षों का पंख चोंच में दी ढेर सारी भूख और भूख के चारों ओर मीठे मीठे सपनों के पतंगे आंख में लगा दिया ईर्ष्या का चश्मा और पैरों में पहना दिया मेरी सारी मजबूती का मोजा अभी तोता उड़ने लगा है। खुश हो रहा हूं उसकी सुंदर उड़ान देखकर गाना सुनने के लिए कानों को तैयार किया है तोता गाना गायगा क्या? मेरी मंशा पर संदेह किया मेरा नाम बदनाम किया कृतघ्न तोते को मैंने उड़ा दिया Kyun ki वह तोता न होकर एक पूर्ण मनुष्य हो चुका था। 8. रोटी बेलना आसान नहीं कितनी बार कह चुका हूँ ! मुझसे रोटी बेलना नहीं होगा , अगर बेलते बेलते रोटी का आकार दसमी के चाँद जैसा हो गया तो ? मुझे ढूँढना पड़ेगा एक आसमान, तारों से भरा परंतु प्रदूषण की आग में रोटी जल जाने का एक ज़िंदा भय है । अकस्मात् अशोक चक्र जैसा गोल हो गया तो ? तब तलाशना होगा एक तिरंगा जहाँ अभाव के प्रतीक स्वरूप रोटी को जोड़ देने से देशद्रोही होने की सम्भावना है ! अगर भारत के मानचित्र जैसा हो गया ? तब गाँव , शहर बाज़ार, रस्ते के भूखे लोग टुकड़ा टुकड़ा कर के छीन लेने का डर है , क्यूँकि असह्य भूख के मारे देश कई दिनों से जल रहा है । देखो तो सच में , इस रोटी की जड़ जाने कहाँ से कहाँ तक फैली है ! राजा से लेकर प्रजा शिल्पपति से लेकर श्रमिक खेती मज़दूर से सैनिक के पेट तक , हर तरफ़ केवल रोटी की ही राज है । हो सकता है फ़रक इतना की कोई सोने के बेलने या तो कोई लकड़ी के बेलने से बेलता हो, मगर जिस भी प्रकार का बेलना दो मुझसे रोटी बेलना नहीं होगा ! मेरे लिए भले बासी चावल ठीक है फ़िकर मत करो सानु ! बचपन से ही नमक और मिर्ची लगाके चावल खाना मेरी एकदम से आदत है ! ◦ 9. अपना गाँव की ठिकाना अभी वह कितनी दुर पहुँचा होगा ? अग्रा, मथुरा मुज़फ़रपुर , पटना ! कितना दुर ? शायद वह जैसे जैसे पैर रफ़्तार से रखता होगा तो रस्ता की लम्बा उतना बढ़ता जाता होगा मोटोर गाड़ी कुछ भी नहीं चारों ओर सुनसान तब साँप सोने के समयपर सिकुड़ना जैसा घन घोर सुनसान में ये रस्ता की लंबाई क्यूँ नहि घट रहा है ? थकान पैर को रस्ता हर समय अनजान ही होता है वह जहाँ चाय की दोकान कर के सो लोगों को पिलाता था वहाँ खड़ा हुआ है एक ज़िन्दा कर्फु चाय की गिलास में जिस मखियों ने भनभनाते थे यहाँतक की उन मखियों को भी लगा है पाबंदी इंसान की बात तो ओर कुछ ! चलागया तो अच्छा हुआ यांहाँ खड़ा होकर रस्ते में , एक इंसान दूसरा को देखना मना है डर लग रहा है ! ऐसी चुप चाप समय में भुख, दुःख ,घ्रिना को लपकते लपकते वह अपना गाँव की ठिकाना खुद धुंड के अगर पहुँच जाता है तो इंसानियत के लिए एक बड़े एहेसान होगा । ◦ 10. बेसहारा शहर मरा हुआ अजगर जैसा सोया पड़ा है एक सन्नाटा सा सड़क । जिस आवारा कुत्ते ने इस सड़क को अतिक्रम करने में भयभीत हो जाता था वह अब शेर की तरह बेफ़िकर घूम रहा है । यह सड़क पहचानती थी जिस तरह बांबी से निकलती हैं फतिंगों की टोलीयां उसी तरह निकलती हुई मोटर गाड़ी,लोगों की भीड़, पहचानती थी कचरा साफ करने वाली वह गंदी हथेलियां श्रम से लथपथ पैडल मारते हुए पसीने से लथपथ पांव, सुलभ सौचालय से जल्दी जल्दी पानी पीती हुई सूखी कंठनली, सड़क किनारे की दुकान से सस्ते राजमा-चावल से पेट भरते हुए भूखे आमाशय। एक दिन यही लोग अपनी औरत का प्यार,अपने बच्चों का स्नेह अपनी जन्मभूमि की ममता, रिश्तेदारों की चेतावनी, सभी कुछ पाँव तले कुचल कर भूख को अपने कन्धों पर लाद कर दौड़ आए थें दिल्ली, ओर इस नगर को समर्पित काए दिए थे अपने सपने, श्रम और सामर्थ्य । खिल उठा था शहर, महक उठा था घर, आँगन , नाली, गली चौराहा, महल,अफिस , पार्क स्टेशन और बाज़ार । हर जगह साफ़ सफ़ाई खिलता हुआ जनसमूह आँखों पर अहंकार का परदा होने के कारण हम देख नहीं पाते थें, अभावभरी शहर की बस्तियाँ सड़क किनारे पांव भर मिट्टी में पेड़ के नीचे, दुकान के किनारे हर दिन जूझता हुआ उनका जीवन संघर्ष । ओर अब वह सड़क पूरी तरह सुनसान पड़ी है न वह पांव, हथेली , अमाशय कुछ भी तो दिखाई नहीं देता है । वह लोग भूख ओर अभाव को झोले में गांठ मार कर नाजाने कब का पीछे छोड़ आये वह टूटी दिवार, उजड़े हुए छप्पर, परित्यक्त आँगन की ओर अपने पाँव बढ़ाए हैं जहाँ भी देखो मरे हुए अजगर जैसी सोयी पड़ी है बेसहारा दिल्ली । अच्छा ! क्या कोई कह सकता है ? इतने सारे नेता, वित्तशाली हस्तियाँ ओर शिल्पपति, शहर में मौजूद होने के बावजूद भी देश का मुखिया क्यूँ हाथ जोड़ कर कह रहा है “ ओ ! मामूली से पांव ओर हथेली ठहर जाओ, जरा रुक जाओ” ना जाने कौन किसके लिए ज्यादा जरूरी है ? इन लोगों की ज़रूरत यह दिल्ली नगरी या फिर दिल्ली के लिए वह पांव ओर हथेलीयाँ? ◦ 11. शरीर शुद्धि एक बार, सिर्फ़ एक बार अपनी ज़ुबान पर रख लो  हड्डी और मिट्टी को कस के पकड़ कर कहो कौन सी गंगा में धोऊँगा मल से सराबोर अपनी देह , कितनी गाड़ी तुलसी पत्ता चाहिए शरीर शुद्धि के लिए, तो कितना टन चंदन लेपन करने से महक उठेगी  मेरी काया? तुम्हारी गाँड़ धोये पानी में बहते हुए मल को जब बालटी मे उठा  कर टंकी से निकालता हूँ तो मैं कैसा दिखता हूँ ? बाँस की लाठी से दबा दबा कर सीवर साफ़ करते वक्त पैखाने से खल खल  बहते हुए पानी में छटपट तैरता रहता हूँ , तो में कैसा दिखता हूँ? नाक फटती हुई कीड़े सराबोर दुर्गन्धयुक्त कुत्ते को अपने बच्चे को गोद लेने जैसा दोनो हाथों मे उठा कर तुम्हारी गाड़ी चलने वाला रास्ते को साफ़ करता हूँ ,तो मैं कैसा दिखता हुँ ? एक बार , सिर्फ़ एक बार आँख की पुतली को मना के सूरज को साक्षी मान के जरा सा देख लो मुझे, तब पता चलेगा तुम्हारे हड्डी के अंदर ताक़त है कितनी? मैं जहाँ भी खड़ा होता हुँ तो चारों तरफ़ भर जाती है दुर्गंध, छी... छी ... में उठ जाती है नाक थुः...थुः .....में मुँह नहीं .......नहीं.......में आँख, मेरे एक दिन के बुख़ार से तुम्हारा आँगन हो जाता है कूड़ाखाना चोक हो जाता है पखाना और मरीज़ों की हड़ताल में काँपता रहता है  डाक्टर खाना एक बार, सिर्फ़ एक बार अपने दिमाग़ से पूछ कर समझा दो मुझे कि ये स्मृति, पुराण, मेधा, शिक्षा का मतलब क्या होता है ? जिस हाथ से साफ़ करता हुँ मल उस हाथ मे खाना खाता, मल ओर खाना, ये दोनो का अंतर मुझे पता, परंतु स्मृति, पुराण, मेधा, शिक्षा का मतलब नहि जानता , मेंने देखा है, सब कुछ देखा है देखा है तुम्हारा अंतडी से निकला हुआ  मुट्ठीभर कुर्मी कीड़े तुम्हारे गले से निकला हुआ गोंद सा बलगम तुम्हारे शव के बिछौना मे लगा हुआ धार धार सड़ा रुधिर मुझे छी... छी ... थुः...थुः... करने के बावजूद मेरी अनहोनी में तुम्हारे मानसिक बिचार एक बार, सिर्फ़ एक बार अपनी ज़ुबान पे हड्डी रख के कह दो गंगा, तुलसी , चंदन इन सब चीज़ों मे से किस मे से कितना दरकार शुद्ध करने के हेतु मेरा मल सराबोर शरीर केवल एक बार शुद्ध करने के लिए मेरा मल सराबोर शरीर 12. एक घर बनाउंगा सोचता हूँ एक घर बनाउँगा बया पक्षी से बनवाउँगा घर का नक़्शा राजगीरी करने के लिए मना लूँगा मकड़ी को थोड़ा ज्यादा दाम देकर जगह ? यहाँ जगह की क्या कमी है? बिनती करने पर मिल ही जाएगी पाँच फुट पाँच इंच की जगह किसी के भी दिल में! भरोसा तो करना ही पड़ेगा । घर का काम जब खतम होगा तब अंगना में रखूँगा गोरैया का थोड़ा सा चहचहाना घर के अंदर छिपकली की किच किच, रसोई घर मे चूहों का कुछ उपद्रव ओर दिवार पर लगाउँगा एक तसवीर समुंदर के अंदर एक नाव की तसवीर रखूँ ? नहीं जंगल के दो शेर की तसवीर रखूँ क्या ? नहीं तो फिर रथ रथी और सारथी: युद्धभूमि का एक दृश्य जिसके नीचे लिखा हो यदा. यदा ... ही.... नहीं .....नहीं...रे.... ऐसी तस्वीरें तो सब के घर में होती है परंतु में एक नई लेकिन जानी पहिचानी सी तस्वीर लगाउँगा जैसे कि पोडा माँझी की ईंटें बनाने वाले उस मज़दूर की तस्वीर: जब वह अपने टूटे बर्तन, टिन के बक्सों को शिर पर लाद कर बस पर चढ़ रहा हो उस समय का दृश्य उसे लगाउँगा मेरे खटिया के सामने नीचे उसके नाम के साथ सारा चहचहाना, किच कीच ओर उपद्रव के चमत्कारभरे संगीत के ध्वनि में डूबा तस्वीर देखते देखते मैं सो जाऊँगा सो जाऊँगा तो सदियों सदियों तक नहीं उठूँगा बहुत सालों के बाद इतिहासकार जब खोज निकालेंगे ये घर न होगा गोरैया का चहचहाना न होगी छिपकली की किच किच और न होगा चूहों का उपद्रव यहाँ तक कि न होगी मेरी खटिया और सोया पडा मेरा कंकाल तस्वीर लेकिन वैसे की वैसी झुलती होगी इतिहासकार तस्वीर को देखते हुए अपना निष्कर्ष दर्ज करेंगे : ‘खोजी गई पुरानी तस्वीर से पता चलता है कि उस जमाने के लोग व्यवसायी थे और पोडा माँझी उन सब का सरदार था।’ 13. अनुपात अनुपात ठीक है न ? उस पर ही ज्यादा ध्यान रखना कि सब कुछ ठीक मात्रा में मिला हो। आँगन मे ख़ुशबूदार पेड़ लगाना है तो लगा लो। दिवार के स्पीकर से कोयल की कैसेट बजानी है तो बजा लो । चुल्हे में हाँड़ी भर अमृत उबालना है, तो उबाल लो । थोड़ा सा बादल लाकर कोमल बिस्तर तैयार करना है तो वह भी कर लो । सब करो ! परंतु सुदृढ़ घर के लिए दरकार है एक संतुलित अनुपात चीज़ों की मिलावट का ! कितने टिन अभाव में कितने टिन सपने कितनी टोकरी भुख के लिए कितनी टोकरी अभिमान - ये सब हिसाब करना पड़ेगा घर जो बसा रहे हो देख लो ! अनुपात ठीक है कि नहीं अन्यथा संभावना है घर उजड़ जाने की! ◦ 14. करडी बाज़ार दो रुपये में भर तो गई चोखनी* फिर भी कहते हो थोड़ा और डालो क़सम से दीदी ! पति और देवर जंगल गए थे कल सुबह से, बाँस काट कर लाते लाते दोपहर हो गया रात भर टुकड़े टुकड़े करने के बाद आज सुबह से बेचने के लिए निकली ऐसे समझो तो दो दिन का ये बेपार है उसके अलावा जंगल के गार्ड बाबू को दिया दस रुपया डूडकासिरा से बलंगिर जाने आने में छे रुपया बस भाड़ा के लिए रास्ते में दस रुपया नाका गेट वाले लिए अभी बोलो एक ही टोकरी करडी है ये कितनी है भला ? इधर बारह रुपये में बालू मिलाया हुआ एक किलो चावल तो घर के वजन से एक मुट्ठी अंतर एक ही टोकरी का तो बेपार है पेट कमर और रास्ते के लिए बचा क्या ? दो रुपया में भर तो गई चोखनी फिर भी आपका मन नहीं भर रहा है ! क़सम से दीदी मेरे बारे में कुछ तो सोचो ! *चोखनी = पत्तों से बना पत्तल या दोना। ◦ 15. पोस्टमार्टम इसीलिए  पोस्टमार्टम किया ? कौन सी दुःख की कमी थी जो हृदय से हृतपिंड तक टुकड़े टुकड़े काट कर नली मे फेंक देने का योजना बनायी क्या कुछ मिला ? हृतपिंड को फोड़ने में निकल पड़ा ढेर सारे दुःख , खोपड़ी को निकालने में उभर पड़ा मुट्ठी भर अभाव, हाथ पैर कटने के बाद निथर पड़ी हथेली भर असहायता, अंत नाड़ी, आमाशय को निष्ठुर की तरह चीर देने के बाद एकदम से निकल आया हांडी हांडी भूख, और सीना फोड़ देने के बाद हथेली से उछल गया अयुत अयुत टूटे सपने, बेमतलब क्या पाने के लिए पोस्टमार्टम किया ? फिर दिन दहाड़े औरों के सामने लज्जित होने के लिए ? अभी योजना बना रहे हो कटे हुए शरीर को नली के गड्ढे मे डाल देने के लिए । प्रिय मित्रो ! ऐसा निर्दयता के तरह तुम मत  डालो गड्ढे में बासुदेव के टुकड़ा टुकड़ा शरीर को भले बाहर ही फेंक दो , ताकी कुछ समय के लिए भूख मिटाएँगे गिद्ध, कुत्ते और सियार हो सकता है टुकड़ा टुकड़ा मांस भुखमरे की  पेट में अलग सा रूप धारण कर सकता है मांसहारी के दिल में कुछ नया सपना बो सकता है ।

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